दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !
हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी,
जल्दी-जल्दी चलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगॆ,
यह ध्यान परों में चिड़ियों के,
भरता कितनी चंचलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !
मुझसे मिलने को कौन विकल ?
मैं होऊँ किसके हित चंचल ?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को,
भरता उर में विह्वलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !
by : Bachchan. One of my favorite poems.
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