Thursday, November 23, 2006

Din jaldi jaldi dhalta hai....

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी,
जल्दी-जल्दी चलता है !

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगॆ,
यह ध्यान परों में चिड़ियों के,
भरता कितनी चंचलता है !

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

मुझसे मिलने को कौन विकल ?
मैं होऊँ किसके हित चंचल ?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को,
भरता उर में विह्वलता है !

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

by : Bachchan. One of my favorite poems.